( यह कहानी मैंने 1969 में लिखी थी जब की मैं दसवीं कक्षा में पढता था . हमारे पड़ोसी मिस्टर सहगल, जो की अपने ऑफिस के काम से काफी यात्रा करते थे , ने एक बार हमे आ कर बताया की कैसे एक बस ड्राइवर ने बस के एक मुसाफिर का चाकू से ख़ून कर दिया था . मैं काफी दिन तक उनके द्वारा सुनाई गयी इस घटना के बारे मैं सोचता रहा कि ड्राइवर ने मुसाफिर की ह्त्या क्यूँ की होगी । फिर मेरी कल्पना को पंख लगे और मैंने यह कहानी लिख ने की कोशिश की । )
बस में इतना शोर था की अपने पास बैठे यात्री की आवाज़ भी ठीक से समझ पाना कठिन था । तरह तरह की आवाजें उठ रही थी । ड्राइवर और कंडक्टर दोनों टौर्च लिए बस के नीचे कुछ मोआइना कर रहे थे । थोड़ी देर बाद उन्हों ने आकर एलान कर दिया की बस का एक्सल टूट गया है और बस आगे नही जा सकती । इतना सुन कर सब मुसाफिरों के चहरे उतर गए, खास कर जिनके साथ औरतें और बच्चे भी थे । रात के 9 बज चुके थे । यह बस मनाली से शिमला जा रही थी और शिमला से चालीस किलोमीटर पीछे ही खराब हो गयी थी । आस पास का इलाका सुन सान था । सब यात्री अपना अपना सामान लेकर सड़क के किनारे इस ताक में खडे हो गए की आती जाती गाड़ियों से लिफ़्ट माँग सकें । कभी कबार एक आध कार या जीप गुज़र जाती थी । लेकिन रुकता कोई भी नहीं । लगभग आध घंटे की इंतज़ार के बाद एक बस आयी । एक यात्री ने भीड़ में से निकल कर उसे हाथ दिखाया . बस थोडा धीरे हुई और कुछ दूरी पर जा कर रूक गयी . सब मुसाफिरों में एक ख़ुशी की लहर दौड़ गयी . वे सब ऐसे चिल्लाये जैसे उनकी टीम ने कोई मैच जीत लिया हो . ड्राइवर बस में से उतर कर लोगों की तरफ आया तो मानो उन्हें यूँ लगा जैसे की भगवान् का साक्षात् अवतार हो . उसने उस आदमी को थोडा ध्यान से देखा जिसने आगे बढ कर बस को हाथ दिखाया था ।
“ हाँ भयी क्या बात है , क्यूँ खडे हो तुम सब इस बस से उतर कर .” उसने इस लहजे में पूछा जैसे की चोरों से कोई पुलिस वाला बात करता है . इतने में पहली बस में से ड्राइवर और कंडक्टर भी उतर कर आ गए .
“ अरे यार ये कमबख्त एक्सल टूट गया है, तुम इन सवारियों को शिमला तक पहुंचा दो तो बड़ी मेहरबानी होगी ।” पहली बस के ड्राइवर ने दुसरे ड्राइवर के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा .
“ अरे कोई बात नहीं , बैठ जाओ भयी सारे .”
सब सवारियां अपना अपना समान ले कर बस में चढ़ गयी जिसमे पहले से भी कुछ यात्री बैठे थे ।
रास्ते में एक चाय की दुकान के सामने बस रुकी और कुछ यात्रिओं ने चाय पी और छोटे बच्चों को पानी वगैरा पिला कर वे एक बार फिर से चल पडे । शिमला पहुंच कर बस विक्टरी सुरंग के सामने आकर रूक गयी और ड्राइवर ने सवारियों को उतर जाने के लिए कहा . सब यात्री ड्राइवर का शुक्रिया अदा करते हुए निकलने लगे की अचानक ड्राइवर ने उस आदमी को कालर से पकड़ लिया जिसने भीड़ में से निकल कर बस को सबसे पहले हाथ दिखाया था . वह आदमी ड्राइवर से कालर छुडा कर भागा लेकिन ड्राइवर ने उसे भाग कर ऐसे पकड़ लिया जैसे बिल्ली चूहे को दबोच लेती है . ड्राइवर ने अपनी बेल्ट के नीचे से चाकू निकाला और देखते ही देखते आठ दास दफा उस आदमी के पेट में चाकू से वार करता चला गया . वहाँ मोजूद यात्री यह देख कर भोंचक्के से रह गए कि यह देवता स्वरूप ड्राइवर ने अचानक राक्षस का रुप क्यूँ धारण कर लिया था और डर कर इधर उधर भागने लगे । कंडक्टर को भी समझ में नही आ रहा था कि अचानक ड्राइवर को क्या हो गया था । वह यात्री ख़ून से लथपथ ज़मीन पर पडा था और ड्राइवर बिना वहाँ से भागने की कोशिश किये थोड़ी दूर ज़मीन पर यूँ बैठ गया मानो दिन भर का थका हारा मजदूर आराम करने के लिए बैठ जाता है ।
***
अदालत में सन्नाटा छाया हुआ था . ड्राइवर बलराज कटघरे में खङा था . जज साहिब सामने पडे कागज़ों पर कुछ लिख रहे थे . उन्हों ने अदालत को संबोधित करते हुए कहा
“ सभी गवाहों और मुजरिम के खुद के बयानात से ये साबित हो गया है की बलराज ने जोगिन्दर का ख़ून चाकू के वार से लोगों की भीड़ के सामने निर्मम तरीके से किया है . लेकिन अदालत को यह ताज़ुब है की सड़क पर मुसीबत में फंसी बस की सवारियों की मदद करने के बाद बलराज ने बिना किसी लडाई झगडे के जोगिन्दर की ह्त्या क्यों की . अदालत यह जानने की इच्छुक है .”
अदालत में एक बार फिर से सन्नाटा छा गया . वहाँ बैठे सभी की नज़रें बलराज पर लगी हुई थी . बलराज की आँखों में कोई पछतावा और माथे पर कोई शिकन नहीं थी . उसका चहरा एक दम शांत लग रहा था .
“ जज साहिब ,” बलराज ने कहना शुरू किया . "मैं चाहता तो नहीं था की इस भद्दी कहानी को अपनी जुबां पर लाऊँ लेकिन आप सुनना ही चाहते है तो शौक़ से सुनिये .”
“वह, यानी जोगिन्दर हमारे शहर ही में रहता था और हमारे घर अक्सर आया करता था . इतने बडे शहर में उस से वाकफियत का एक ही कारण था की वह हमारे गाँव का रहने वाला था . हमारे परिवार में मैं , मेरी बहन सुमन और मेरे माता जीं थे . पिता जीं की बहुत साल पहले एक हादसे में मौत हो गयी थी . माता जीं को थोड़ी बहुत पेंशन मिलती थी जिससे घर की रोटी चल रही थी . मैं बी ए पास कर चुका था और छोटी मोटी नौकरी की तलाश में भटक रहा था . सुमन की उमर शादी के काबिल हो चुकी थी . माता जीं ने फैंसला किया की सुमन को कुछ दिन के लिए नानी जीं के पास भेज दिया जाये और फिर कोई अच्छा सा रिश्ता देख कर उसके हाथ पीले कर देंगे . जोगिन्दर भी उन दिनों गाँव जाने की तयारी में था इसलिये सुमन को उसके साथ भेज दिया .”
“ दुसरे दिन का अखबार देखते ही मेरी आँखों का आगे अँधेरा छा गया . अखबार के तीसरे पन्ने पर एक खबर छपी थी जिसमें मोटे अक्षरों में लिखा था ' एक जवान लडकी को रेल के एक डिब्बे में बेहोश पाया गया है . मेडिकल रिपोर्ट से पता चला है की उसके साथ बलात्कार हुआ है और फिर उसका गला दबा कर उसकी जान लेने की कोशिश की गयी है . लडकी की फोटो छापी जा रही है . जो भी उसे पहचाने फ़ौरन नीचे लिखे पते पर पहुंचे।' अखबार में छपी फोटो सुमन की थी . माता जीं ने तो यह खबर सुनते ही दीवार पर माथा पटक दिया . पिता जीं की मौत के बाद उनका दिल बहुत कमजोर हो गया था । कुछ पडोसी उन्हें उठा कर अस्पताल ले गए । एक पडोसी से कुछ रूपये उधार ले कर मैं अखबार में दिए गए पते पर पहुंचा । सुमन का वार्ड ढूँढ़ते देर ना लगी । मैं सुमन के बेड के पास बैठा बार बार यह सोच रहा था की किस दरिन्दे ने किया होगा मेरी बहन का यह हाल । तभी सुमन को धीरे धीरे होश आना शुरू हुआ । उसने कुछ बोलने की कोशिश की लेकिन उसकी जुबां लड्खडा रही थी मैं सिर्फ़ इतना ही समझ पाया
की उसने खुद को बचाने की बहुत कोशिश की और फिर सुमन की जुबां पर एक बार जोगिन्दर का नाम आया और उसका सर एक तरफ लुडक गया। डाक्टर ने उसकी जांच की और फिर सर लटका कर वहां से चला गया। वहां मोजूद पुलिस अधिकारी ने मुझ से सवाल पूछने शुरू कर दिए । मैंने सब कुछ सच सच बता दिया ।
अगले दिन मैं सुमन के निर्जीव शरीर को लेकर जब वापस पहुंचा तो पता चला की माता जीं भी अस्पताल में दम तोड़ चुकी थी ।
एक साथ दो चिताओं को आग दे कर मेरे दिल में भी शोले भड़कने लगे । मेरी आंखों में आंसुओं की जगह ख़ून था । पडोसी मुझे तरह तरह की सांत्वना दे रहे थे । लेकिन मेरे सामने एक ही इरादा था, उस कमीने को तलाश कर उसे सज़ा देना ।
उसके बाद मैं अपनी बूढी नानी के पास चला गया । मैंने जोगिन्दर के गाँव जा कर उसकी पूछ ताछ की लेकिन उसका किसी को कुछ पता नहीं था । वो शायद जानता था की पुलिस उसे तलाश रही होगी । लेकिन पुलिस से पहले मैं उसे खोज कर सज़ा देना चाहता था . और एक दिन ऐसे ही सोचता हुआ चला जा रहा था की एक ट्रक के नीचे आते आते बचा । ट्रक ड्राइवर ने वक्त पर ब्रेक लगा दी थी लेकिन फिर भी टकरा कर गिर गया था और माथे पर थोड़ी सी चोट आ गयी थी । उसने उतर कर मुझे ट्रक में बिठा लिया । मैंने उससे आप बीती कह सुनाई । उसने मुझे सलाह दीं की मैं ड्राइविंग सीख लूं । कुछ महीनो में मैं ट्रक चलाना सीख गया और उसकी मदद कराने लगा । मूझे एक ट्रांसपोर्ट कम्पनी में बस ड्राइवर की नौकरी मिल गयी । चार पांच साल मैंने बस चलायी और अपने मुजरिम की तलाश भी जारी रखी।"
यह कह कर बलराज थोडा रुका । अदालत में इस क़दर चुप्पी छाई हुई थी की ट्यूब लाइट की आवाज़ भी आसानी से सुन रही थी ।
" जज साहब " बलराज ने फिर कहना शुरू किया ।
" पूरे पांच साल के बाद उस रात जब मैंने उसे भीड़ मे से निकल कर बस को हाथ दिखाते हुए देखा तो मैं उसका घिनोना चहरा झट पहचान गया लेकिन मेरी वेश वूशा बिल्कुल बदली होने की वजह से वह शायद मुझे नही पहचान पाया । बदले के शोले जो की मेरे सीने में दहक रहे थे वो आग में तब्दील हो गए । जो कानून , जो पुलिस उसे ना खोज सके वो मेरी आंखों के सामने खङा था। उसे देखते ही मेरे ज़ख़्म ताज़ा हो गए और मेरी बहन और मेरी माँ की तस्वीर मेरी आंखों के सामने नाचने लगी । उसके बाद जो कुछ मैंने किया वो अदालत जान चुकी है ।"
सरकारी वकील उठकर कुछ कहने ही वाले थे की उन्हें बीच में ही रोक कर बलराज ने फिर कहना शुरू किया
" जज साहब, "
जज साहब ने वकील को बैठने का इशारा किया
" यह ठीक है की मैंने कानून को अपने हाथ में लिया है लेकिन आपका कानून उसे ज़्यादा से ज़्यादा फांसी या उमर क़ैद की सज़ा दे देता लेकिन उस से मेरे दिल में दहक रही आग शांत नहीं होती . कानून की निगाहों में मैं भी गुनहगार हूँ लेकिन अब मुझे अगर फांसी का फंदा भी मिलेगा तो भी मैं उसे चूम लूंगा "
इसके बाद सरकारी वकील ने उठ कर कुछ कहा और फिर जज साहब ने . बलराज को कुछ भी सुनाई नही दिया । उसकी आंखों के सामने तो बस उसकी माँ की तस्वीर नाच रही थी और कानों में बहन की चीखें गूँज रही थी। उधर जज साहब अपना फैंसला लिख चुके थे और लिखने के बाद उनहोंने अपनी कलम दो टुकड़ों में तोड़ दीं थी.
बस में इतना शोर था की अपने पास बैठे यात्री की आवाज़ भी ठीक से समझ पाना कठिन था । तरह तरह की आवाजें उठ रही थी । ड्राइवर और कंडक्टर दोनों टौर्च लिए बस के नीचे कुछ मोआइना कर रहे थे । थोड़ी देर बाद उन्हों ने आकर एलान कर दिया की बस का एक्सल टूट गया है और बस आगे नही जा सकती । इतना सुन कर सब मुसाफिरों के चहरे उतर गए, खास कर जिनके साथ औरतें और बच्चे भी थे । रात के 9 बज चुके थे । यह बस मनाली से शिमला जा रही थी और शिमला से चालीस किलोमीटर पीछे ही खराब हो गयी थी । आस पास का इलाका सुन सान था । सब यात्री अपना अपना सामान लेकर सड़क के किनारे इस ताक में खडे हो गए की आती जाती गाड़ियों से लिफ़्ट माँग सकें । कभी कबार एक आध कार या जीप गुज़र जाती थी । लेकिन रुकता कोई भी नहीं । लगभग आध घंटे की इंतज़ार के बाद एक बस आयी । एक यात्री ने भीड़ में से निकल कर उसे हाथ दिखाया . बस थोडा धीरे हुई और कुछ दूरी पर जा कर रूक गयी . सब मुसाफिरों में एक ख़ुशी की लहर दौड़ गयी . वे सब ऐसे चिल्लाये जैसे उनकी टीम ने कोई मैच जीत लिया हो . ड्राइवर बस में से उतर कर लोगों की तरफ आया तो मानो उन्हें यूँ लगा जैसे की भगवान् का साक्षात् अवतार हो . उसने उस आदमी को थोडा ध्यान से देखा जिसने आगे बढ कर बस को हाथ दिखाया था ।
“ हाँ भयी क्या बात है , क्यूँ खडे हो तुम सब इस बस से उतर कर .” उसने इस लहजे में पूछा जैसे की चोरों से कोई पुलिस वाला बात करता है . इतने में पहली बस में से ड्राइवर और कंडक्टर भी उतर कर आ गए .
“ अरे यार ये कमबख्त एक्सल टूट गया है, तुम इन सवारियों को शिमला तक पहुंचा दो तो बड़ी मेहरबानी होगी ।” पहली बस के ड्राइवर ने दुसरे ड्राइवर के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा .
“ अरे कोई बात नहीं , बैठ जाओ भयी सारे .”
सब सवारियां अपना अपना समान ले कर बस में चढ़ गयी जिसमे पहले से भी कुछ यात्री बैठे थे ।
रास्ते में एक चाय की दुकान के सामने बस रुकी और कुछ यात्रिओं ने चाय पी और छोटे बच्चों को पानी वगैरा पिला कर वे एक बार फिर से चल पडे । शिमला पहुंच कर बस विक्टरी सुरंग के सामने आकर रूक गयी और ड्राइवर ने सवारियों को उतर जाने के लिए कहा . सब यात्री ड्राइवर का शुक्रिया अदा करते हुए निकलने लगे की अचानक ड्राइवर ने उस आदमी को कालर से पकड़ लिया जिसने भीड़ में से निकल कर बस को सबसे पहले हाथ दिखाया था . वह आदमी ड्राइवर से कालर छुडा कर भागा लेकिन ड्राइवर ने उसे भाग कर ऐसे पकड़ लिया जैसे बिल्ली चूहे को दबोच लेती है . ड्राइवर ने अपनी बेल्ट के नीचे से चाकू निकाला और देखते ही देखते आठ दास दफा उस आदमी के पेट में चाकू से वार करता चला गया . वहाँ मोजूद यात्री यह देख कर भोंचक्के से रह गए कि यह देवता स्वरूप ड्राइवर ने अचानक राक्षस का रुप क्यूँ धारण कर लिया था और डर कर इधर उधर भागने लगे । कंडक्टर को भी समझ में नही आ रहा था कि अचानक ड्राइवर को क्या हो गया था । वह यात्री ख़ून से लथपथ ज़मीन पर पडा था और ड्राइवर बिना वहाँ से भागने की कोशिश किये थोड़ी दूर ज़मीन पर यूँ बैठ गया मानो दिन भर का थका हारा मजदूर आराम करने के लिए बैठ जाता है ।
***
अदालत में सन्नाटा छाया हुआ था . ड्राइवर बलराज कटघरे में खङा था . जज साहिब सामने पडे कागज़ों पर कुछ लिख रहे थे . उन्हों ने अदालत को संबोधित करते हुए कहा
“ सभी गवाहों और मुजरिम के खुद के बयानात से ये साबित हो गया है की बलराज ने जोगिन्दर का ख़ून चाकू के वार से लोगों की भीड़ के सामने निर्मम तरीके से किया है . लेकिन अदालत को यह ताज़ुब है की सड़क पर मुसीबत में फंसी बस की सवारियों की मदद करने के बाद बलराज ने बिना किसी लडाई झगडे के जोगिन्दर की ह्त्या क्यों की . अदालत यह जानने की इच्छुक है .”
अदालत में एक बार फिर से सन्नाटा छा गया . वहाँ बैठे सभी की नज़रें बलराज पर लगी हुई थी . बलराज की आँखों में कोई पछतावा और माथे पर कोई शिकन नहीं थी . उसका चहरा एक दम शांत लग रहा था .
“ जज साहिब ,” बलराज ने कहना शुरू किया . "मैं चाहता तो नहीं था की इस भद्दी कहानी को अपनी जुबां पर लाऊँ लेकिन आप सुनना ही चाहते है तो शौक़ से सुनिये .”
“वह, यानी जोगिन्दर हमारे शहर ही में रहता था और हमारे घर अक्सर आया करता था . इतने बडे शहर में उस से वाकफियत का एक ही कारण था की वह हमारे गाँव का रहने वाला था . हमारे परिवार में मैं , मेरी बहन सुमन और मेरे माता जीं थे . पिता जीं की बहुत साल पहले एक हादसे में मौत हो गयी थी . माता जीं को थोड़ी बहुत पेंशन मिलती थी जिससे घर की रोटी चल रही थी . मैं बी ए पास कर चुका था और छोटी मोटी नौकरी की तलाश में भटक रहा था . सुमन की उमर शादी के काबिल हो चुकी थी . माता जीं ने फैंसला किया की सुमन को कुछ दिन के लिए नानी जीं के पास भेज दिया जाये और फिर कोई अच्छा सा रिश्ता देख कर उसके हाथ पीले कर देंगे . जोगिन्दर भी उन दिनों गाँव जाने की तयारी में था इसलिये सुमन को उसके साथ भेज दिया .”
“ दुसरे दिन का अखबार देखते ही मेरी आँखों का आगे अँधेरा छा गया . अखबार के तीसरे पन्ने पर एक खबर छपी थी जिसमें मोटे अक्षरों में लिखा था ' एक जवान लडकी को रेल के एक डिब्बे में बेहोश पाया गया है . मेडिकल रिपोर्ट से पता चला है की उसके साथ बलात्कार हुआ है और फिर उसका गला दबा कर उसकी जान लेने की कोशिश की गयी है . लडकी की फोटो छापी जा रही है . जो भी उसे पहचाने फ़ौरन नीचे लिखे पते पर पहुंचे।' अखबार में छपी फोटो सुमन की थी . माता जीं ने तो यह खबर सुनते ही दीवार पर माथा पटक दिया . पिता जीं की मौत के बाद उनका दिल बहुत कमजोर हो गया था । कुछ पडोसी उन्हें उठा कर अस्पताल ले गए । एक पडोसी से कुछ रूपये उधार ले कर मैं अखबार में दिए गए पते पर पहुंचा । सुमन का वार्ड ढूँढ़ते देर ना लगी । मैं सुमन के बेड के पास बैठा बार बार यह सोच रहा था की किस दरिन्दे ने किया होगा मेरी बहन का यह हाल । तभी सुमन को धीरे धीरे होश आना शुरू हुआ । उसने कुछ बोलने की कोशिश की लेकिन उसकी जुबां लड्खडा रही थी मैं सिर्फ़ इतना ही समझ पाया
की उसने खुद को बचाने की बहुत कोशिश की और फिर सुमन की जुबां पर एक बार जोगिन्दर का नाम आया और उसका सर एक तरफ लुडक गया। डाक्टर ने उसकी जांच की और फिर सर लटका कर वहां से चला गया। वहां मोजूद पुलिस अधिकारी ने मुझ से सवाल पूछने शुरू कर दिए । मैंने सब कुछ सच सच बता दिया ।
अगले दिन मैं सुमन के निर्जीव शरीर को लेकर जब वापस पहुंचा तो पता चला की माता जीं भी अस्पताल में दम तोड़ चुकी थी ।
एक साथ दो चिताओं को आग दे कर मेरे दिल में भी शोले भड़कने लगे । मेरी आंखों में आंसुओं की जगह ख़ून था । पडोसी मुझे तरह तरह की सांत्वना दे रहे थे । लेकिन मेरे सामने एक ही इरादा था, उस कमीने को तलाश कर उसे सज़ा देना ।
उसके बाद मैं अपनी बूढी नानी के पास चला गया । मैंने जोगिन्दर के गाँव जा कर उसकी पूछ ताछ की लेकिन उसका किसी को कुछ पता नहीं था । वो शायद जानता था की पुलिस उसे तलाश रही होगी । लेकिन पुलिस से पहले मैं उसे खोज कर सज़ा देना चाहता था . और एक दिन ऐसे ही सोचता हुआ चला जा रहा था की एक ट्रक के नीचे आते आते बचा । ट्रक ड्राइवर ने वक्त पर ब्रेक लगा दी थी लेकिन फिर भी टकरा कर गिर गया था और माथे पर थोड़ी सी चोट आ गयी थी । उसने उतर कर मुझे ट्रक में बिठा लिया । मैंने उससे आप बीती कह सुनाई । उसने मुझे सलाह दीं की मैं ड्राइविंग सीख लूं । कुछ महीनो में मैं ट्रक चलाना सीख गया और उसकी मदद कराने लगा । मूझे एक ट्रांसपोर्ट कम्पनी में बस ड्राइवर की नौकरी मिल गयी । चार पांच साल मैंने बस चलायी और अपने मुजरिम की तलाश भी जारी रखी।"
यह कह कर बलराज थोडा रुका । अदालत में इस क़दर चुप्पी छाई हुई थी की ट्यूब लाइट की आवाज़ भी आसानी से सुन रही थी ।
" जज साहब " बलराज ने फिर कहना शुरू किया ।
" पूरे पांच साल के बाद उस रात जब मैंने उसे भीड़ मे से निकल कर बस को हाथ दिखाते हुए देखा तो मैं उसका घिनोना चहरा झट पहचान गया लेकिन मेरी वेश वूशा बिल्कुल बदली होने की वजह से वह शायद मुझे नही पहचान पाया । बदले के शोले जो की मेरे सीने में दहक रहे थे वो आग में तब्दील हो गए । जो कानून , जो पुलिस उसे ना खोज सके वो मेरी आंखों के सामने खङा था। उसे देखते ही मेरे ज़ख़्म ताज़ा हो गए और मेरी बहन और मेरी माँ की तस्वीर मेरी आंखों के सामने नाचने लगी । उसके बाद जो कुछ मैंने किया वो अदालत जान चुकी है ।"
सरकारी वकील उठकर कुछ कहने ही वाले थे की उन्हें बीच में ही रोक कर बलराज ने फिर कहना शुरू किया
" जज साहब, "
जज साहब ने वकील को बैठने का इशारा किया
" यह ठीक है की मैंने कानून को अपने हाथ में लिया है लेकिन आपका कानून उसे ज़्यादा से ज़्यादा फांसी या उमर क़ैद की सज़ा दे देता लेकिन उस से मेरे दिल में दहक रही आग शांत नहीं होती . कानून की निगाहों में मैं भी गुनहगार हूँ लेकिन अब मुझे अगर फांसी का फंदा भी मिलेगा तो भी मैं उसे चूम लूंगा "
इसके बाद सरकारी वकील ने उठ कर कुछ कहा और फिर जज साहब ने . बलराज को कुछ भी सुनाई नही दिया । उसकी आंखों के सामने तो बस उसकी माँ की तस्वीर नाच रही थी और कानों में बहन की चीखें गूँज रही थी। उधर जज साहब अपना फैंसला लिख चुके थे और लिखने के बाद उनहोंने अपनी कलम दो टुकड़ों में तोड़ दीं थी.
2 comments:
Balli,
Ama yar tum to 'shayar' aur 'kahanikar' dono ban gaye ho. Shabash 2-in-1 !! Bahut mazaa aya.
Bas tumhare jaise dost aur kadar daan mil jayen to aur bhee mazaa ayegaa
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