1992 में हमारे बोम्बे ऑफिस में एक कहानी पूर्ती प्रतियोगिता आयोजित की गयी थी । कहानी का आधा भाग ऑफिस की तरफ से मिला था जिसका सार नीले रंग में दिया गया है । आधी कहानी को पूरा करने के लिए मेरे द्वारा लिखा गया हिस्सा काले रंग में है मुझे इस प्रतियोगिता में दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था।
कहानी का पहला भाग जो की आफिस से मिला :-
अभी कुछ दिन पहले ही तो नेहा की सगाई खन्ना परिवार में हुई थी. नेहा एक बहुत होन हार लडकी थी. वह पढ़ाई लिखायी में तो होशियार थी ही इसके साथ साथ अपने कालेज में हर कार्यक्रम में बढ चढ़ कर हिस्सा लेती थी. सभी अध्यापकों की चहेती नेहा एक बार फिर से बी ए फ़ाइनल में अव्वल दर्जे पर पास हुई थी. वह अभी और पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन खन्ना परिवार के वह इतना मन भा गयी थी की उन्हों ने गुप्ता जीं से कह कर नेहा का रिश्ता अपने बेटे रीतेश के साथ तय कर दिया था. जल्दी जल्दी में सगाई कर दी थी और शादी की तारीख भी पक्की कर दीं थी. हालांकि नेहा चाहती थी कि वह अभी और पढ़ाई करे लेकिन आशा यह जिद कर रही थी की इतना अछा रिश्ता फिर शायद ना मिले और अगर मिला भी तो पता नहीं कितना दहेज़ देना पडे. खन्ना परिवार बहुत सीधी सादे लोग थे और उनकी ऐसी कोई भी माँग नही थी. रीतेश एक प्रायवेट कंपनी में उंचे ओहदे पर था. उसका छोटा भाई अभी पढ़ रहा था. सगाई के बाद बहुत खुश थे दोनों परिवार. नेहा एक दो बार रीतेश के साथ घूमने भी गयी थी. लेकिन वो ज्यादातर फ़ोन पर ही बातें करते थे। आज रीतेश ने फ़ोन कर के नेहा को एक रेस्तौरांत में चाय पर बुलाया था. उधर खन्ना जीं ने गुप्ता जीं को उनके ऑफिस में फ़ोन कर के एक बुरी खबर सुना डाली थी. उन्होने बताया की उनका बेटा रीतेश शादी के लिए तैयार नहीं है क्योंकि वो पहले से ही एक लडकी से प्यार करता था. उन्हों ने बहुत अफ़सोस जताते हुए कहा की रीतेश ने उन सब को धोके में रखा है इसके लिए वो बहुत शर्मिन्दा हैं. लेकिन रीतेश ने अपने पिता जीं से इतना ज़रूर कहा था की वोह नेहा के साथ शादी ना कर के सब की भलाई कर रहा है।
बाकी की कहानी जो मैंने लिखी
गुप्ता जीं ने घर आते ही आशा से सब कह डाला. आशा तो सब कुछ अवाक सी हो कर सुनती रही. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या कहे. उसे अब समझ में आया की नेहा जब बाहर से वापस आयी थी तो तब्बीयत खराब होने का बहाना बना कर सीधा अपने कमरे में क्यों चली गयी थी. यह याद करते ही आशा को ऐसा लगा मानो उसके दिल की धड़कन बंद हो गयी हो. वो नेहा के कमरे की तरफ भागी. गुप्ता जीं भी उसके पीछे पीछे भागे । कमरा अन्दर से बंद था और अन्दर से नेहा के रोने की आवाज़ आ रही थी जिसे सुन कर दोनों की जान में जान आयी । वैसे गुप्ता जीं अपनी बेटी को अच्छी तरह जानते थे. उन्हें मालूम था की नेहा भावुक ज़रूर है लेकिन बुजदिल नही।
आशा ने ज्यों ही दरवाज़ा खटखटाने के लिए हाथ बढ़ाया, गुप्ता जी ने उसे रोक दिया. वे दोनों कुछ देर तक बिना आवाज़ किये खडे रहे। नेहा अन्दर अब भी रो रही थी। उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और दबे पाँव वापस लौट आये। गुप्ता जी को यह लग रहा था की इस समय नेहा के सामने जा कर उस से कुछ पूछना, जलती आग मे घी डालने के समान होगा । उन्हों ने आशा से कहा की जब तक नेहा खुद बात नही छेड़ती वे उस से कुछ नहीं पूछेंगे. उन्हें असलियत तो मालूम हो ही चुकी थी।थोड़ी देर बाद नेहा ने कमरे का दरवाज़ा खोल दिया , लेकिन वो बाहर नहीं आयी, और बिस्तर पर औंधे मुँह लेटी रही. आशा का दिल बार बार चाह रहा था की वो अपनी बेटी को गले से लगा कर फूट फूट कर रो दे. रात में आशा एक दो बार उसके कमरे में गयी भी । अखिर माँ का दिल था। नेहा अब सो गयी थी।
आशा ने तो सारी रात करवटें बदलते ही काटी। वह रात में कई बार नेहा के कमरे में गयी . नेहा गहरी नीद सो गयी थी . दूसरे दिन सुबहा जब वे लोग जागें तो नेहा रसोयी में चाय बना रही थी. थोड़ी देर में वो चाय की ट्रे लेकर उनके कमरे में आयी. नेहा की आंखों से ऐसा ज़रूर लग रहा था की रात वह बहुत रोई थी , लेकिन अब उसके चहरे पर दुःख का नामों निशाँ भी नहीं था. उसकी आँखों में एक चमक थी, सुबह की धूप की तरह. नेहा ने मुस्कुराते हुये दोनों को प्रणाम किया. यह देख कर गुप्ता जीं का चेहरा खिल उठा. उन्हों ने मुस्कुराते हुये आशा की तरफ देखा. आशा को कुछ समझ तो नहीं आया लेकिन उन दोनों को मुस्कुराते देख कर वो भी खुश हो गयी. गुप्ता जीं नेहा की मनोस्थिती को अच्छी तरह से समझ रहे थे । उसने कल की घटना और उसके बाद की वेदना को रात के अँधेरे की तरह पीछे छोड़ दिया था. आज उसने जीवन को एक चुनौती समझ कर स्वीकार कर लिया था. उसने कुछ कर दिखाने का निर्णय ले लिया था. चाय के बाद जब नेहा स्नान इत्यादी करने गयी तो गुप्ता जीं ने आशा को सब समझा दिया. इसके बाद इस बात का परिवार में ज़िक्र तक भी नहीं हुआ. जब भी कोई रिश्तेदार या पड़ोसी नेहा की शादी के बारे में बात करते तो उन्हें यह कह कर टाल देते की नेहा अभी और पढ़ाई करना चाहती है. गुप्ता और खन्ना परिवारों का मिलना जुलना लगभग बंद हो गया था.
नेहा ने एम् ए में एडमिशन ले लिया. दो साल की कडी मेहनत के बाद उसने एक बार फिर से अव्वल दर्जा हांसिल किया. उसके बाद उसने सिविल सेर्विसस के लिए परीक्षा दीं. रिजल्ट आने पर उसका नाम पहले बीस प्रतियाशिओं में था।
आज नेहा और उसके परिवार के लिए बहुत ख़ुशी का दिन था. नेहा आयी ए एस का प्रशिक्षण पूरा कर के अपने परिवार से मिलने जा रही थी। दिल्ली - बोम्बे फ़्लाइट में बैठी वह एक मेगजीन के पन्ने पलट रही थी । माता पिता से मिलने को कितना बेचैन हो रहा था उसका दिल । आज उसे खुद पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था । उसने ना केवल अपने माता पिता की इच्छा पूर्ती ही कर दिखायी थी मगर उस से कहीं आगे की मंज़िल भी हांसिल कर ली थी । चार साल पहले होने वाली सगाई की
कहानी का पहला भाग जो की आफिस से मिला :-
अभी कुछ दिन पहले ही तो नेहा की सगाई खन्ना परिवार में हुई थी. नेहा एक बहुत होन हार लडकी थी. वह पढ़ाई लिखायी में तो होशियार थी ही इसके साथ साथ अपने कालेज में हर कार्यक्रम में बढ चढ़ कर हिस्सा लेती थी. सभी अध्यापकों की चहेती नेहा एक बार फिर से बी ए फ़ाइनल में अव्वल दर्जे पर पास हुई थी. वह अभी और पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन खन्ना परिवार के वह इतना मन भा गयी थी की उन्हों ने गुप्ता जीं से कह कर नेहा का रिश्ता अपने बेटे रीतेश के साथ तय कर दिया था. जल्दी जल्दी में सगाई कर दी थी और शादी की तारीख भी पक्की कर दीं थी. हालांकि नेहा चाहती थी कि वह अभी और पढ़ाई करे लेकिन आशा यह जिद कर रही थी की इतना अछा रिश्ता फिर शायद ना मिले और अगर मिला भी तो पता नहीं कितना दहेज़ देना पडे. खन्ना परिवार बहुत सीधी सादे लोग थे और उनकी ऐसी कोई भी माँग नही थी. रीतेश एक प्रायवेट कंपनी में उंचे ओहदे पर था. उसका छोटा भाई अभी पढ़ रहा था. सगाई के बाद बहुत खुश थे दोनों परिवार. नेहा एक दो बार रीतेश के साथ घूमने भी गयी थी. लेकिन वो ज्यादातर फ़ोन पर ही बातें करते थे। आज रीतेश ने फ़ोन कर के नेहा को एक रेस्तौरांत में चाय पर बुलाया था. उधर खन्ना जीं ने गुप्ता जीं को उनके ऑफिस में फ़ोन कर के एक बुरी खबर सुना डाली थी. उन्होने बताया की उनका बेटा रीतेश शादी के लिए तैयार नहीं है क्योंकि वो पहले से ही एक लडकी से प्यार करता था. उन्हों ने बहुत अफ़सोस जताते हुए कहा की रीतेश ने उन सब को धोके में रखा है इसके लिए वो बहुत शर्मिन्दा हैं. लेकिन रीतेश ने अपने पिता जीं से इतना ज़रूर कहा था की वोह नेहा के साथ शादी ना कर के सब की भलाई कर रहा है।
बाकी की कहानी जो मैंने लिखी
गुप्ता जीं ने घर आते ही आशा से सब कह डाला. आशा तो सब कुछ अवाक सी हो कर सुनती रही. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या कहे. उसे अब समझ में आया की नेहा जब बाहर से वापस आयी थी तो तब्बीयत खराब होने का बहाना बना कर सीधा अपने कमरे में क्यों चली गयी थी. यह याद करते ही आशा को ऐसा लगा मानो उसके दिल की धड़कन बंद हो गयी हो. वो नेहा के कमरे की तरफ भागी. गुप्ता जीं भी उसके पीछे पीछे भागे । कमरा अन्दर से बंद था और अन्दर से नेहा के रोने की आवाज़ आ रही थी जिसे सुन कर दोनों की जान में जान आयी । वैसे गुप्ता जीं अपनी बेटी को अच्छी तरह जानते थे. उन्हें मालूम था की नेहा भावुक ज़रूर है लेकिन बुजदिल नही।
आशा ने ज्यों ही दरवाज़ा खटखटाने के लिए हाथ बढ़ाया, गुप्ता जी ने उसे रोक दिया. वे दोनों कुछ देर तक बिना आवाज़ किये खडे रहे। नेहा अन्दर अब भी रो रही थी। उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और दबे पाँव वापस लौट आये। गुप्ता जी को यह लग रहा था की इस समय नेहा के सामने जा कर उस से कुछ पूछना, जलती आग मे घी डालने के समान होगा । उन्हों ने आशा से कहा की जब तक नेहा खुद बात नही छेड़ती वे उस से कुछ नहीं पूछेंगे. उन्हें असलियत तो मालूम हो ही चुकी थी।थोड़ी देर बाद नेहा ने कमरे का दरवाज़ा खोल दिया , लेकिन वो बाहर नहीं आयी, और बिस्तर पर औंधे मुँह लेटी रही. आशा का दिल बार बार चाह रहा था की वो अपनी बेटी को गले से लगा कर फूट फूट कर रो दे. रात में आशा एक दो बार उसके कमरे में गयी भी । अखिर माँ का दिल था। नेहा अब सो गयी थी।
आशा ने तो सारी रात करवटें बदलते ही काटी। वह रात में कई बार नेहा के कमरे में गयी . नेहा गहरी नीद सो गयी थी . दूसरे दिन सुबहा जब वे लोग जागें तो नेहा रसोयी में चाय बना रही थी. थोड़ी देर में वो चाय की ट्रे लेकर उनके कमरे में आयी. नेहा की आंखों से ऐसा ज़रूर लग रहा था की रात वह बहुत रोई थी , लेकिन अब उसके चहरे पर दुःख का नामों निशाँ भी नहीं था. उसकी आँखों में एक चमक थी, सुबह की धूप की तरह. नेहा ने मुस्कुराते हुये दोनों को प्रणाम किया. यह देख कर गुप्ता जीं का चेहरा खिल उठा. उन्हों ने मुस्कुराते हुये आशा की तरफ देखा. आशा को कुछ समझ तो नहीं आया लेकिन उन दोनों को मुस्कुराते देख कर वो भी खुश हो गयी. गुप्ता जीं नेहा की मनोस्थिती को अच्छी तरह से समझ रहे थे । उसने कल की घटना और उसके बाद की वेदना को रात के अँधेरे की तरह पीछे छोड़ दिया था. आज उसने जीवन को एक चुनौती समझ कर स्वीकार कर लिया था. उसने कुछ कर दिखाने का निर्णय ले लिया था. चाय के बाद जब नेहा स्नान इत्यादी करने गयी तो गुप्ता जीं ने आशा को सब समझा दिया. इसके बाद इस बात का परिवार में ज़िक्र तक भी नहीं हुआ. जब भी कोई रिश्तेदार या पड़ोसी नेहा की शादी के बारे में बात करते तो उन्हें यह कह कर टाल देते की नेहा अभी और पढ़ाई करना चाहती है. गुप्ता और खन्ना परिवारों का मिलना जुलना लगभग बंद हो गया था.
नेहा ने एम् ए में एडमिशन ले लिया. दो साल की कडी मेहनत के बाद उसने एक बार फिर से अव्वल दर्जा हांसिल किया. उसके बाद उसने सिविल सेर्विसस के लिए परीक्षा दीं. रिजल्ट आने पर उसका नाम पहले बीस प्रतियाशिओं में था।
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आज नेहा और उसके परिवार के लिए बहुत ख़ुशी का दिन था. नेहा आयी ए एस का प्रशिक्षण पूरा कर के अपने परिवार से मिलने जा रही थी। दिल्ली - बोम्बे फ़्लाइट में बैठी वह एक मेगजीन के पन्ने पलट रही थी । माता पिता से मिलने को कितना बेचैन हो रहा था उसका दिल । आज उसे खुद पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था । उसने ना केवल अपने माता पिता की इच्छा पूर्ती ही कर दिखायी थी मगर उस से कहीं आगे की मंज़िल भी हांसिल कर ली थी । चार साल पहले होने वाली सगाई की
वह एक बुरा सपना समझ कर भूल चुकी थी.
“एक्स्क्यूस मी ”
तभी किसी आवाज़ ने नेहा को चौंका दिया । उसने जब मेगजीन हटा कर देखा तो उसे लगा मानों उसने किसी बिजली के तार को छू दिया हो । रीतेश एक हाथ मे ब्रीफ केस लटकाए और दुसरे में बोर्डिंग पास पकड़े खड़ा नेहा की तरफ देख रहा था । चहरे पर हलकी सी मुस्कराहट थी । उसने नेहा के साथ वाली सीट की तरफ इशारा करते हुए कहा “ कितना सौभाग्य है मेरा की आप के साथ सफ़र करने का मौका मिल रहा है ।” नेहा ने पहले तो सोचा की एयर होस्टेस को बुला कर अपनी सीट बदली करवा ले , लेकिन नहीं , वो अब पहले वाली भावुक नेहा नहीं थी. वह रीतेश जैसे पुरषों का सामना अच्छी तरह से करना जानती थी.
“ कहो नेहा कैसी हो ” रीतेश ने अपना ब्रीफ केस ऊपर लग्गेज केबिन में रखा और बैठते ही बात चीत का दौर शुरू कर दिया.
“ अच्छी हूँ ” नेहा ने मेगजीन पढ़ते पढ़ते ही जवाब दिया.
“ ट्रेनिंग कैसी रही. मसूरी में तो मौसम बहुत सुहाना रहा होगा ” रीतेश ने अपनी सेफ्टी बेल्ट लगाते हुए कहा ।
“ ओह तो आपको सब मालूम है ”
रीतेश ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया.
“आप कहिये आप की गृहस्थी कैसी चल रही है ” नेहा की आवाज़ में थोडा व्यंग था
“ अच्छी है, मम्मी पापा ठीक है और छोटू अभी पढ़ रहा है. एम् बी ए में एडमिशन लिया है उसने ”. प्लेन ने टैक्सी करना शुरू कर दिया था और रीतेश उस एअर होस्टेस की तरफ धयान से देख रह था जो की इशारों से सुरक्षा संबधी नियम बता रही थी.
“ और आपकी पत्नी ” नेहा ने कनखियों से एक बार रीतेश की तरफ देखा और फिर खिड़की में से बाहर जमीन को पीछे छूट ते हुए देखने लगी.
“कैसी पत्नी, क्या कभी कंवारे पुर्षों की भी पत्निया सुनी हैं ?”
नेहा यह सुन कर चौंक गयी
“ तो क्या आपने अपनी प्रेमिका से शादी नही की ” नेहा ने मेगजीन का पन्ना पलट कर कहा.
“ जीं नहीं, लेकिन अब ज़रूर करना चाहूँगा, अगर प्रेमिका मान जाये तो ”
“ क्या मतलब,” नेहा ने मेगजीन बंद करके पहली बार रीतेश की आंखों से आंखें मिलाते हुए गम्भीरता से देखा.
लेकिन इस से कंहीं अधिक गम्भीरता रीतेश के चहरे पर नज़र आ रही थी. उसने कहना शुरू किया।
“ हमारी सगायी के बाद तुमसे जब एक दो बार बात हुयी तो मुझे ऐसा लगा मानो तुम और तुम्हारे पापा चाहते थे की तुम अभी और पढ़ाई करो. लेकिन रिश्ता तय हो जाने के बाद शादी भी जल्दी में तय की जा रही थी. मुझे यह भी पता चल गया था की तुम पढने में बहुत लायक हो. ऎसी स्थिती में तुम्हारी शादी करना तुम्हारे पैरों में जंजीर डालने के समान होता. शादी के बाद अक्सर औरतें गृहस्थी में उलझ कर रह जाती हैं. लेकिन मेरे सामने बड़ा प्रश्न यह था की इस शादी को रोका कैसे जाये. केवल मेरे या तुम्हारे कहने से हमारे परिवार वाले शायद ना मानते. इस लिए मुझे झूठ का सहारा लेना पड़ा. मुझे मालूम था की इस बात से तुम्हारे दिल को बहुत चोट पहुँचेगी , लेकिन अक्सर देखा गया है की चोट खाया हुआ इन्सान अगर कोई प्रण कर ले तो उसे फिर कोई नहीं रोक सकता ”
यह सब सुन कर नेहा का मुँह तो खुला ही रह गया. चुप चाप बुत सी बनी वेह रीतेश की आँखों में देख रही थी. उनमे उसे सच्चाई की झलक नज़र आ रही थी. रीतेश ने थोडा रूक कर फिर कहना शुरू किया।
“ और उस दिन के बाद मैं तुम्हें एक एक कदम आगे बढ़ता हुआ देखता रहा हूँ. मेरे माता पिता ने मुझे मेरी प्रेमिका के साथ मिलने और उस से शादी करने को कयी बार कहा, जिसे मैं यह कह कर टालता रह की वह अभी पढ़ रही है. लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था की मेरी प्रेमिका और कोई नहीं बल्कि तुम ही हो और जिसका मैं अब भी इंतज़ार कर रहा हूँ ”.
टेक ऑफ़ के लिए केबिन की बत्तियां धीमी कर दीं गयी थी नेहा की जुबां को कहने के लिए कोई शब्द नहीं मिल रहे थे.
प्लेन टेक ऑफ़ कर चुका था और सफ़ेद बादलों को चीरता हुआ नीले आकाश में एक आज़ाद पंछी की तरह आगे बढ रहा था।
नेहा को मालूम नही कि कब उसने अपना हाथ धीरे से रितेश के हाथ में थमा दिया था.
“एक्स्क्यूस मी ”
तभी किसी आवाज़ ने नेहा को चौंका दिया । उसने जब मेगजीन हटा कर देखा तो उसे लगा मानों उसने किसी बिजली के तार को छू दिया हो । रीतेश एक हाथ मे ब्रीफ केस लटकाए और दुसरे में बोर्डिंग पास पकड़े खड़ा नेहा की तरफ देख रहा था । चहरे पर हलकी सी मुस्कराहट थी । उसने नेहा के साथ वाली सीट की तरफ इशारा करते हुए कहा “ कितना सौभाग्य है मेरा की आप के साथ सफ़र करने का मौका मिल रहा है ।” नेहा ने पहले तो सोचा की एयर होस्टेस को बुला कर अपनी सीट बदली करवा ले , लेकिन नहीं , वो अब पहले वाली भावुक नेहा नहीं थी. वह रीतेश जैसे पुरषों का सामना अच्छी तरह से करना जानती थी.
“ कहो नेहा कैसी हो ” रीतेश ने अपना ब्रीफ केस ऊपर लग्गेज केबिन में रखा और बैठते ही बात चीत का दौर शुरू कर दिया.
“ अच्छी हूँ ” नेहा ने मेगजीन पढ़ते पढ़ते ही जवाब दिया.
“ ट्रेनिंग कैसी रही. मसूरी में तो मौसम बहुत सुहाना रहा होगा ” रीतेश ने अपनी सेफ्टी बेल्ट लगाते हुए कहा ।
“ ओह तो आपको सब मालूम है ”
रीतेश ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया.
“आप कहिये आप की गृहस्थी कैसी चल रही है ” नेहा की आवाज़ में थोडा व्यंग था
“ अच्छी है, मम्मी पापा ठीक है और छोटू अभी पढ़ रहा है. एम् बी ए में एडमिशन लिया है उसने ”. प्लेन ने टैक्सी करना शुरू कर दिया था और रीतेश उस एअर होस्टेस की तरफ धयान से देख रह था जो की इशारों से सुरक्षा संबधी नियम बता रही थी.
“ और आपकी पत्नी ” नेहा ने कनखियों से एक बार रीतेश की तरफ देखा और फिर खिड़की में से बाहर जमीन को पीछे छूट ते हुए देखने लगी.
“कैसी पत्नी, क्या कभी कंवारे पुर्षों की भी पत्निया सुनी हैं ?”
नेहा यह सुन कर चौंक गयी
“ तो क्या आपने अपनी प्रेमिका से शादी नही की ” नेहा ने मेगजीन का पन्ना पलट कर कहा.
“ जीं नहीं, लेकिन अब ज़रूर करना चाहूँगा, अगर प्रेमिका मान जाये तो ”
“ क्या मतलब,” नेहा ने मेगजीन बंद करके पहली बार रीतेश की आंखों से आंखें मिलाते हुए गम्भीरता से देखा.
लेकिन इस से कंहीं अधिक गम्भीरता रीतेश के चहरे पर नज़र आ रही थी. उसने कहना शुरू किया।
“ हमारी सगायी के बाद तुमसे जब एक दो बार बात हुयी तो मुझे ऐसा लगा मानो तुम और तुम्हारे पापा चाहते थे की तुम अभी और पढ़ाई करो. लेकिन रिश्ता तय हो जाने के बाद शादी भी जल्दी में तय की जा रही थी. मुझे यह भी पता चल गया था की तुम पढने में बहुत लायक हो. ऎसी स्थिती में तुम्हारी शादी करना तुम्हारे पैरों में जंजीर डालने के समान होता. शादी के बाद अक्सर औरतें गृहस्थी में उलझ कर रह जाती हैं. लेकिन मेरे सामने बड़ा प्रश्न यह था की इस शादी को रोका कैसे जाये. केवल मेरे या तुम्हारे कहने से हमारे परिवार वाले शायद ना मानते. इस लिए मुझे झूठ का सहारा लेना पड़ा. मुझे मालूम था की इस बात से तुम्हारे दिल को बहुत चोट पहुँचेगी , लेकिन अक्सर देखा गया है की चोट खाया हुआ इन्सान अगर कोई प्रण कर ले तो उसे फिर कोई नहीं रोक सकता ”
यह सब सुन कर नेहा का मुँह तो खुला ही रह गया. चुप चाप बुत सी बनी वेह रीतेश की आँखों में देख रही थी. उनमे उसे सच्चाई की झलक नज़र आ रही थी. रीतेश ने थोडा रूक कर फिर कहना शुरू किया।
“ और उस दिन के बाद मैं तुम्हें एक एक कदम आगे बढ़ता हुआ देखता रहा हूँ. मेरे माता पिता ने मुझे मेरी प्रेमिका के साथ मिलने और उस से शादी करने को कयी बार कहा, जिसे मैं यह कह कर टालता रह की वह अभी पढ़ रही है. लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था की मेरी प्रेमिका और कोई नहीं बल्कि तुम ही हो और जिसका मैं अब भी इंतज़ार कर रहा हूँ ”.
टेक ऑफ़ के लिए केबिन की बत्तियां धीमी कर दीं गयी थी नेहा की जुबां को कहने के लिए कोई शब्द नहीं मिल रहे थे.
प्लेन टेक ऑफ़ कर चुका था और सफ़ेद बादलों को चीरता हुआ नीले आकाश में एक आज़ाद पंछी की तरह आगे बढ रहा था।
नेहा को मालूम नही कि कब उसने अपना हाथ धीरे से रितेश के हाथ में थमा दिया था.
3 comments:
हिन्दी ब्लॉगिंग मे आपका स्वागत है। यदि आप लगातार हिन्दी मे लिखने की सोच रहे है तो आप अपना ब्लॉग नारद पर रजिस्टर करवाएं। नारद पर आपको हिन्दी चिट्ठों की पूरी जानकारी मिलेगी।
Beautiful idea,
wonderfully put
shows your positive mindset.
Thank you Manpreet, yes sometimes one is inspired by the surroundings and sometimes by some friends. And i have one such friend whom i have tried to depict in my part of the story.
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