वो आँखें
कनखियों से देखती
लम्बी सफ़ेद अंगुलियां
बालों को बार बार
कानों के पीछे संवारती
राह चलते कदम
कभी आगे कभी पीछे
कभी तेज़ कभी धीमे
एक अजीब सी कशिश थी वो
और खिंचता चला गया था मैं
फिर डूब गया उन आँखों में
उलझ गया उन बालों में
उड़ता रहा बादल की तरह
हवा के उस झोंके के साथ
कभी लगा शिखर पर हूँ
और फिर अगले ही पल
गिर गया ज़मीन पर
होता रहा इक एहसास
कभी आसमां सा हल्का
और कभी जमीं सा भारी
कनखियों से देखती
लम्बी सफ़ेद अंगुलियां
बालों को बार बार
कानों के पीछे संवारती
राह चलते कदम
कभी आगे कभी पीछे
कभी तेज़ कभी धीमे
एक अजीब सी कशिश थी वो
और खिंचता चला गया था मैं
फिर डूब गया उन आँखों में
उलझ गया उन बालों में
उड़ता रहा बादल की तरह
हवा के उस झोंके के साथ
कभी लगा शिखर पर हूँ
और फिर अगले ही पल
गिर गया ज़मीन पर
होता रहा इक एहसास
कभी आसमां सा हल्का
और कभी जमीं सा भारी
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