एय सफारी,
तू थी ड्रेस बड़ी नियारी
पहना करते थे तुझे
सब अधिकारी
लेकिन तुझमें थी कुछ
अपनी ही खामियां
जिसकी वजह से
तू गयी थी नकारी
गर्मियों की धूप में
पसीने के दाग
दूर से चमकते थे
आर्म पिट्स के पास
तू कभी जो ड्रेस थी
ऊंचे ओह्देदारों की
बन गयी पहचान अब
गुरबे ओर गवारों की
हाँ यह ज़रूर है
तू जचती थी कुछ पर
चाहे वो काबिल हो या फिर
हो कोई अनाड़ी
लेकिन अमूमन यह ही
देखा था हमने
तुने अच्छे अच्छों की थी
शख्सीयत बिगाडी
इस लिए ओह पियारी
अब खत्म अपनी यारी
तुझे अलविदा हमारी
एय सफारी
तू थी ड्रेस बड़ी नियारी
पहना करते थे तुझे
सब अधिकारी
लेकिन तुझमें थी कुछ
अपनी ही खामियां
जिसकी वजह से
तू गयी थी नकारी
गर्मियों की धूप में
पसीने के दाग
दूर से चमकते थे
आर्म पिट्स के पास
तू कभी जो ड्रेस थी
ऊंचे ओह्देदारों की
बन गयी पहचान अब
गुरबे ओर गवारों की
हाँ यह ज़रूर है
तू जचती थी कुछ पर
चाहे वो काबिल हो या फिर
हो कोई अनाड़ी
लेकिन अमूमन यह ही
देखा था हमने
तुने अच्छे अच्छों की थी
शख्सीयत बिगाडी
इस लिए ओह पियारी
अब खत्म अपनी यारी
तुझे अलविदा हमारी
एय सफारी
2 comments:
Hi!
Good poetry, A tribute to "Safari".
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http://www.belovedlife-santosh.blogspot.com.
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