(यह पंक्तियां मेरे पिता जी ने 1962 के चीन युद्ध के समय लिखी थी। नौं साल बाद 1971 के पाकिस्तान युद्ध के समय, मैंने एक लेख लिखा था जिसे मैंने शिमला रेडियो स्टेशन पर पढ़ कर सुनाया था। लेख का अंत मैंने इन पंक्तियों से ही किया था। आज के माहोल में भी यह पंक्तिआं कितनी सही बैठती हैं )
जागो भारत के वीरो
ज़माना है आज़मायिश का
छोड़ दो ऐशो-इशरत
कि समय नही नुमायश का
तोड़ दो सर दरिंदों के
के मुड़ कर ना इधर आयें
ऐसा वार करो उन पर
की दुम्ब दबा कर भाग
जागो भारत के वीरो
ज़माना है आज़मायिश का
छोड़ दो ऐशो-इशरत
कि समय नही नुमायश का
तोड़ दो सर दरिंदों के
के मुड़ कर ना इधर आयें
ऐसा वार करो उन पर
की दुम्ब दबा कर भाग
5 comments:
nice one! long time since I read somthing in VEER RUS.
Thanks Renu. The youth of our country is in the need of Veer Rus instead of remixes.
Oh wow
this is a great side of yours
Thank you Manpreet. Yes, at times the imagination runs wild but soon i again get back to the consious world.
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